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भारत और सुश्रुत

विश्व के पहले शल्य चिकित्सक - आचार्य सुश्रुत  सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। उनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है। (सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है। विश्वामित्र से कौन से विश्वामित्र अभिप्रेत हैं, यह स्पष्ट नहीं। सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था। काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है। सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे। सुश्रुत का नाम नावनीतक में भी आता है। अष्टांगसंग्रह में सुश्रुत का जो मत उद्धृत किया गया है; वह मत सुश्रुत संहिता में नहीं मिलता; इससे अनुमान होता है कि सुश्रुत संहिता के सिवाय दूसरी भी कोई संहिता सुश्रुत के नाम से प्रसिद्ध थी। सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प्रसिद्ध हैं। यह सुश्रुत राजर्षि

हमारी चेतना

प्रकृति को समझने के लिये प्रकृति ने जो हमे लूप दिया है वही चेतना है। चेतना हर एक लिये बिल्कुल अलग है, जैसा आप अपने आसपास को महसूस करते हैं वैसा मैं नही करता। वास्तविकता से विपरीत दृष्टिकोण होगा आपका और मेरा। लेकिन फिर भी मानवों का सोचना लगभग मिलान कर ही जाता है, पर क्या हमारे और जानवरों के बीच भी ऐसा होता होगा? चलिये! अपने पालतू जानवारों से कुछ समझा जाये, क्या वो भी ऐसा ही करते हैं? जब मैने अपने पालतू को देखा तो मुझे एक अनुभूति हुई, परन्तु क्या यही अनुभव वे भी करते होंगे, तो ऐसा कदापि नही होता। प्रसिद्ध क्वांट्म भौतिकशास्त्री मेचियो काकू का कहना है की जीवों के चेतना को मापा जा सकता है। मानव चेतना का तीन स्तर होता है और दो तो जानवरों से ही मिला है, मानव के विकास (कपि से मानव बनने की प्रक्रिया) में सरीसृप से फिर स्तनधारियों से जो मिला है वह सूर्य के गति तक का ही मिलता है अर्थात् जानवारों से पूरे दिन का चेतना हमे मिल पाता है। लेकिन, अन्तिम स्तर स्वयं हमारे अंदर है, जो की भविष्य का भी सोच सकता हैं हम कठिन समस्या में अपने मस्तिष्क का उपयोग कर उसे सुलझा लेते हैं वर्तमान को महसूस कर भविष्य के

सफलता का रहस्य

विलियम शेक्सपियर ने कहा था की "हमारी शंकाए इतनी विश्वासघातनी हैं की वे हमें प्रयास करने से भी रोक देती हैं और हम सभी मोर्चों पर असफल हो जाते हैं जहां पर हम जीत सकते हैं।"  ज्यादातर लोग सफलता न पाने का कारण अपनी परिस्तिथियों को देते हैं किसी भी क्षेत्र में वही सफ़ल व्यक्ति है जिसनें स्वयं ही अपने लिये अनुकूल परिस्थितियाँ बनाईं, हम वही बनते हैं जिसके बारे में सोचते हैं, इसलिए हमें ठोस और सार्थक लक्ष्य के बारें में पहले से सोचना है। और दूसरी ओर वह व्यक्ति है जिसे अपने लक्ष्य के बारे में कोई जानकारी नही है अर्थात् संशय में जीवन बनाये रखे है उसे नही पता की कहाँ जाना है तो वह वैसे ही हो जाएगा जैसा सोच रहा है और कुछ भी नही बन पायेगा। अब हम आत्मशोध करें की, ये सब कैसे हो जाता है? कि जैसा हम सोच रहें हैं वैसा ही आसपास का वातावरण बन जाता है। हम कल्पना करते हैं की एक किसान है, जिसके पास थोड़ी सी जमीन है वह जमीन बड़ी ही उपजाऊ है उसमें क्या बोना है यह किसान पर निर्भर करता है और इससे जमीन को कोई मतलब नही है। ठीक ऐसे ही हमारे मन को हमसे कोई स्वार्थ नही है की हम क्या सोचते हैं बस जो हम मन रूपी